Two-Wheeler Ownership Transfer Process 2025 | Step-by-Step Guide in hindi


How
to
Transfer
Ownership
of
a
Two-wheeler:

भारत
में
किसी
भी
टू-व्हीलर
की
ऑनरशिप
ट्रांसफर
करना
एक
लीगल
प्रोसेस
है,
जो
मोटर
व्हीकल
एक्ट
1988
और
सेंट्रल
मोटर
व्हीकल
रूल्स
1989
के
तहत
होती
है।
ये
प्रक्रिया
खरीददार
और
विक्रेता
दोनों
के
लिए
जरूरी
है।

मौजूदा
समय
में
ज्यादातर
राज्य
Parivahan
पोर्टल
(parivahan.gov.in)
के
जरिए
ऑनलाइन
भी
ये
काम
करते
हैं,
लेकिन
कुछ
दस्तावेजों
के
लिए
आरटीओ
जाना
पड़
सकता
है।
आइए,
टू-व्हीलर
की
ऑनरशिप
ट्रांसफर
करने
का
स्टेप-बाय-स्टेप
प्रोसेस
जान
लेते
हैं।

जरूरी
दस्तावेज
(Documents
Required)

  1. फॉर्म
    29
    (Notice
    of
    Transfer
    of
    Ownership):
    दो
    कॉपी
    (विक्रेता
    द्वारा
    भरा
    और
    साइन
    किया
    हुआ)
  2. फॉर्म
    30
    (Application
    for
    Intimation
    and
    Transfer
    of
    Ownership):
    दो
    कॉपी
    (खरीददार
    और
    विक्रेता
    दोनों
    साइन
    करेंगे)
  3. मूल
    आरसी
    (Registration
    Certificate/Smart
    Card)
  4. वैध
    बीमा
    पॉलिसी
    (Insurance
    Policy):
    नए
    मालिक
    के
    नाम
    पर
    ट्रांसफर
    करवाना
    जरूरी
  5. पॉल्यूशन
    अंडर
    कंट्रोल
    सर्टिफिकेट
    (PUC)
  6. खरीददार
    का
    पता
    प्रमाण
    (Address
    Proof):
    आधार
    कार्ड,
    पासपोर्ट,
    वोटर
    आईडी
    आदि
  7. खरीददार
    का
    पहचान
    प्रमाण
    (ID
    Proof)
  8. पैन
    कार्ड
    की
    कॉपी
    (दोनों
    पक्षों
    की)
  9. वाहन
    की
    चेसिस
    नंबर
    की
    पेंसिल
    इंप्रेशन
    (Chassis
    Print)
  10. एनओसी
    (No
    Objection
    Certificate):
    अगर
    वाहन
    दूसरे
    राज्य
    से
    है
    या
    फाइनेंस
    पर
    था
    तो
    बैंक
    से
    क्लीयरेंस/NOC
  11. डिलीवरी
    नोट/इनवॉइस:
    (अगर
    नया
    वाहन
    नहीं
    है,
    तो
    सेल
    डीड
    या
    एग्रीमेंट
    भी
    चलेगा)
  12. आरटीओ
    द्वारा
    मांगे
    गए
    फीस
    का
    चालान

स्टेप-बाय-स्टेप
प्रोसेस
(Step-by-Step
Process)

  • स्टेप-1:
    विक्रेता
    और
    खरीददार
    मिलकर
    फॉर्म
    29
    और
    फॉर्म
    30
    डाउनलोड
    करें
    (Parivahan
    वेबसाइट
    से)
    और
    पूरी
    तरह
    भरें
    तथा
    साइन
    करें।
  • स्टेप-2:
    विक्रेता
    फॉर्म
    29
    की
    दो
    कॉपी
    अपने
    क्षेत्र
    के
    आरटीओ
    में
    जमा
    करे
    (ये
    सूचना
    है
    कि
    मैंने
    वाहन
    बेच
    दिया
    है)।
    इससे
    विक्रेता
    की
    कानूनी
    जिम्मेदारी
    खत्म
    हो
    जाती
    है।
  • स्टेप-3:
    बीमा
    कंपनी
    से
    इंश्योरेंस
    पॉलिसी
    को
    नए
    मालिक
    के
    नाम
    पर
    ट्रांसफर
    करवाएं।
    इसके
    लिए
    पुरानी
    पॉलिसी,
    फॉर्म
    29-30
    और
    नई
    पॉलिसी
    के
    लिए
    आवेदन
    करना
    पड़ता
    है।
  • स्टेप-4:
    खरीददार
    अपने
    राज्य
    के
    आरटीओ
    में
    फॉर्म
    30
    के
    साथ
    सभी
    दस्तावेज
    जमा
    करे।
    अगर
    दोनों
    पक्ष
    एक
    ही
    आरटीओ
    क्षेत्र
    में
    हैं,
    तो
    एक
    ही
    जगह
    जमा
    हो
    सकता
    है।
  • स्टेप-5:
    आरटीओ
    फीस
    जमा
    करें
    (हर
    राज्य
    में
    अलग-अलग
    होती
    है,
    आमतौर
    पर
    ₹200
    से
    ₹500
    तक
    स्मार्ट
    कार्ड
    के
    लिए)।
  • स्टेप-6:
    आरटीओ
    वाहन
    की
    जांच
    कर
    सकता
    है
    (फिजिकल
    वेरिफिकेशन)।
    चेसिस
    नंबर
    और
    इंजन
    नंबर
    मिलान
    करते
    हैं।
  • स्टेप-7:
    सभी
    दस्तावेज
    सही
    पाए
    जाने
    पर
    नया
    स्मार्ट
    कार्ड
    (RC)
    खरीददार
    के
    नाम
    पर
    15-30
    दिनों
    में
    जारी
    हो
    जाता
    है।
    कुछ
    राज्य
    तुरंत
    भी
    दे
    देते
    हैं।

ऑनलाइन
प्रोसेस
(2025
तक
ज्यादातर
राज्य
में
उपलब्ध)

Parivahan.gov.in
पर
जाएं

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नंबर
और
चेसिस
नंबर
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अपलोड
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फीस
ऑनलाइन
दें
अपॉइंटमेंट
लेकर
आरटीओ
सिर्फ
वाहन
वेरिफिकेशन
के
लिए
जाना
पड़
सकता
है

समय
सीमा

ट्रांसफर
की
सूचना
बिक्री
के
14
दिन
के
अंदर
देनी
होती
है,
वरना
₹100-300
प्रति
माह
का
जुर्माना
लग
सकता
है।
पूरा
ट्रांसफर
30
दिन
के
अंदर
करवा
लेना
चाहिए।

बोनस
टिप

अगर
वाहन
हाइपोथीकेशन
(लोन)
पर
है,
तो
बैंक
से
NOC
जरूरी
है।
दूसरे
राज्य
में
ट्रांसफर
करने
पर
नया
रजिस्ट्रेशन
नंबर
भी
लेना
पड़
सकता
है।
डुप्लीकेट
आरसी
होने
पर
पहले
उसे
क्लियर
करवाएं।

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